Catalytic Converter in Hindi – कैटेलिटिक कनवर्टर होता क्या है?
डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine) का धुआं सड़क और आस-पास के लोगों को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचाते हैं। वाहनों के धुएं में कई प्रकार के अधजले हाइड्रोकार्बन और हानिकारक गैसें होती हैं। इन हाइड्रोकार्बनों और गैसों को सामान्य प्रदूषण-रहित गैसों और यौगिकों में बदलने के लिए आधुनिक वाहनों में कैटेलिटिक कनवर्टर (Catalytic Converter) का इस्तेमाल किया जाता है।
इसके जरिए वाहनों के धुएं वाली पाइप (exhaust pipe या साइलेंसर) के जरिए धुआं बाहर वातावरण में छोड़े जाने से पहले ही उसमें मौजूद प्रदूषणकारी यौगिकों को CO2, N2 जैसी प्रदूषणरहित गैसों और जलवाष्प में बदल दिया जाता है।
वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण को बहुत हद तक रोकने में उपयोगी इस Catalytic Converter नामक डिवाइस में कैटेलिस्ट (catalyst) यानी उत्प्रेरक कहे जाने वाले पदार्थ होते हैं जिनकी मौजूदगी में कनवर्टर के अंदर वह अभिक्रिया (रिएक्शन) होती है जिससे हानिकारक यौगिक प्रदूषण-रहित सरल यौगिकों में बदल जाते हैं। कैटेलिस्ट के रूप में साधारणतः Platinum, Palladium Rhodium का इस्तेमाल किया जाता है।
कैटेलिस्ट की मदद से होने वाले इस कनवर्जन (रूपांतरण) के कारण ही इस उपकरण का नाम कैटेलिटिक कनवर्टर पड़ा। कैटेलिटिक कनवर्टर का आविष्कार 1950 में अमेरिका में एक फ्रेंच केमिकल इंजीनियर यूजीन हाउड्री (Eugene Houdry) ने किया था।
यह एक सरल किस्म का मेटल (धातु) निर्मित उपकरण है जो वाहन के exhaust pipe से इंजन के पास जुड़ा होता है। इंजन से आने वाला धुआं कैटेलिटिक कनवर्टर में प्रदूषण मुक्त होकर वाहन के साइलेंसर (exhaust pipe) में पहुंचता है और बाहर निकल जाता है।
उपकरण के अंदर मधुमक्खी के छत्ते की दिखने वाली सिरेमिक की बनी एक संचरना होती है जिसके ऊपर कैटेलिस्ट की परत चढ़ी होती है। जब प्रदूषित गैसें इससे होकर गुजरती हैं तो उन्हें कैटेलिस्ट के साथ संपर्क में आने के लिए बड़ा क्षेत्रफल मिल जाता है और वे तेजी से कनवर्ट होने लगती हैं, यानी प्रदूषणरहित गैसों में बदलने लगती हैं।
Catalytic Converter कैसे काम करता है?
इंजन के धुएं में मुख्यतः तीन प्रकार के हानिकारक यौगिक होते हैं- (i) कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), (ii) कई तरह के अधजले हाइड्रोकार्बन यौगिक और (iii) NO, NO2 जैसे नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स। इन्हें अप्रदूषक गैसों- कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन और जलवाष्प में बदलना ही कैटेलिटिक कनवर्टर का काम है। आधुनिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाला कैटेलिटिक कनवर्टर थ्री-वे कैटेलिटिक कनवर्टर कहलाता है।
इसे थ्री-वे इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके अंदर तीन काम होते हैं-
- कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) को ऑक्सीडेशन [Oxidation] या ऑक्सीकरण के जरिए कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) में बदलना,
- अधजले हाइड्रोकार्बन यौगिकों को ऑक्सीडेशन के जरिए CO2 और पानी (H2O) में बदलना, और
- NO2 और NO को रिडक्शन रिएक्शन [Reduction] या अवकरण के जरिए नाइट्रोजन गैस (N2) में बदलना
पहले टू-वे कनवर्टर का उपयोग किया जाता था जो केवल कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन कंपाउंड्स को कनवर्ट करते थे।
कनवर्ट होने के बाद वाहन के साइलेंसर से जो प्रॉडक्ट्स वातावरण में छोड़े जाते हैं वे प्रदूषणरहित कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन गैस और जलवाष्प होते हैं, और इस तरह सड़क का वातावरण और हमारा परिवेश वाहन के धुएं से प्रदूषित नहीं होता।
कैटेलिटिक कनवर्टर की कमियां
Catalytic Converter की अपनी कुछ सीमाएं भी हैं। प्रायः ये तभी अपना काम कर पाते हैं जब इनके अंदर गैसों का तापमान कम से कम 300 डिग्री सेंल्सियस रहे। इसके लिए इंजन को चालू कर 2-3 मिनट तक गर्म करना जरूरी होता है तभी कनवर्टर 300 डिग़्री या उससे अधिक तापमान वाली exhaust गैसें मिल पाती हैं। अब, इंजन वार्म-अप होने की इस 2-3 मिनट की अवधि में जो धुआं निकला वह बिना शुद्ध हुए ही वातावरण में चला गया।
कनवर्टर के काम करने की दूसरी शर्त यह है कि वाहन में सीसा रहित ईंधन (unleaded fuel) का इस्तेमाल किया जाए। सीसा यानी लेड (lead) की मौजूदगी में कैटेलिस्ट दूषित (poisoned) हो जाते हैं।
इसलिए, जमीन पर हमारी सांस लेने वाली परिवेशी हवा को वाहन से निकलने वाले धुएं के प्रदूषण से बचाने के लिए कैटेलिटिक कनवर्टर एक कारगर उपाय है। भारत में 2020 से लागू किए गए BS-6 इंजन वाले वाहनों में इसका होना अनिवार्य कर दिया गया है।
क्या कैटेलिटिक कनवर्टर से हम पूरी तरह निश्चिंत हो सकते हैं?
लेकिन, यदि आप यह समझ रहे हैं कि कैटेलिटिक कनवर्टर से निकलने वाले प्रदूषण रहित कार्बन डाईऑक्साइड से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती हैं तो आप गलत हैं।
भले ही CO2 के कारण हमारी सांस लेने वाली जमीनी हवा प्रदूषित नहीं होती, लेकिन यह गैस वायुमंडल में पहुंच कर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में योगदान देती है। इसके अलावा, कैटेलिटिक कनवर्टर से थोड़ी मात्रा में नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) भी निकलती है और CO2 की तरह यह भी एक ग्रीन हाउस गैस है। इसका ग्रीनहाउस इफेक्ट CO2 की तुलना में बहुत ज्यादा होता है।