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कार्बुरेटर vs फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम-कौन बेहतर?

इस आलेख- ‘कार्बुरेटर vs फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम in Hindi’ में हम जानेंगे वाहनों में कार्बुरेटर और फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम क्या है? इन दोनों में वाहनों के लिए कौन सा बेहतर है?

Carburetor vs Fuel Injection System in Hindi : कार्बुरेटर सिस्टम vs फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम

वाहनों के इंजन आंतरिक दहन इंजन यानी इंटर्नल कंबशन इंजन होते हैं। इन इंजनों के इंटर्नल कंबशन चैंबर में फ्यूल को कंट्रोल्ड तरीके से जलाया जाता है और उसके पैदा होने वाली ऊर्जा से वाहन को गति करने की शक्ति मिलती है।

कंबशन चैंबर में दहन होने के लिए वहां तक फ्यूल और हवा दोनों की सही मात्रा पहुंचनी चाहिए। गाड़ियों के इंजन में कार्ब्युरेटर और फ्यूल इंजेक्शन यही काम करते हैं। लेकिन, ये दोनों डिवाइस इस काम को अलग-अलग तरीके से करते हैं। कार्ब्युरेटर पुरानी तकनीक है जबकि फ्यूल इंजेक्शन बाद का आविष्कार है।

कार्बुरेटर vs फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम

कार्ब्युरेटर सिस्टम

कार्ब्युरेटर वह डिवाइस है जो फ्यूल और एयर का मिक्सचर तैयार कर उसे इंटर्नल कंबशन इंजन में दहन (combustion) के लिए भेजता है। कार्बुरेटर बर्नोली के सिद्धांत पर काम करता है। हाई वेलॉसिटी वाले एयर जेट यानी गैस के तेज प्रवाह की मदद से फ्यूल को खींच कर कंबशन चैंबर में भेजा जाता है।

चोक और थ्रॉटल दो वाल्व होते हैं जिनसे होकर कार्युरेटर के अंदर एयर और फ्यूल पहुंचता है। चोक की मदद से एयर की मात्रा को कम किया जाता है और थ्रॉटल फ्यूल की मात्रा तय करता है। इस तरह कार्ब्युरेटर का काम है जेट के रूप में एयर-फ्यूल mixture  को इंजन के कंबशन चैंबर में भेजना।

कार्बुरेटर vs फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम

कार्ब्युरेटर एक किफायती और टिकाऊ डिवाइस है। लेकिन इसके साथ समस्या यह होती है कि यह एयर-फ्यूल मिक्स्चर तैयार करने के लिए इंजन के लोड कंडीशन और एनवायरनमेंटल टेंप्रेचर के अनुसार एयर और फ्यूल की बिल्कुल सटीक मात्रा नहीं ले पाता। कुल मिलाकर दोनों की एक एवरेज मात्रा ली जाती है।

कार्ब्युरेटर में सबकुछ मेकैनिकल तरीके से होता है। इसमें किसी इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटरीकृत सिस्टम का उपयोग नहीं होता। इसकारण, मिक्स्चर में एयर-फ्यूल की मात्रा जरूरत से अधिक या कम हो सकती है। इस वजह से वाहन का माइलेज थोड़ा कम हो जाता है। फ्यूल इंजेक्शन कार्ब्युरेट की इस कमी को दूर कर देता है।

फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम

फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम में इंजन के कंबशन चैंबर के अंदर अलग-अलग बिल्कुल सही मात्रा में फ्यूल और एयर को डायरेक्ट इंजेक्ट किया जाता है। फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम में यह काम इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटरीकृत तरीके से होता है।

इलेक्ट्रॉनिक सेंसर की मदद से मिलने वाली डेटा बता देती है कि इंजन को कब कितनी मात्रा में फ्यूल और कितनी मात्रा में एयर चाहिए। इस तरह यह सिस्टम इंजन को उसके लोड कंडीशन और वातावरण के टेंप्रेचर के अनुसार एयर और फ्यूल की बिल्कुल सटीक मात्रा देता है।

डीजल इंजनों में फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम का इस्तेमाल 1920 के दशक से होता आ रहा है। पेट्रोल इंजन वाली कारों में इसका चलन बाद में हुआ। आज फ्यूल इंजेक्टर बड़ी तेजी से कार्ब्युरेटर की जगह ले रहा है।

कार्ब्युरेटर और फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम में कौन बेहतर है?

वाहनों में कार्ब्युरेटर सिस्टम का इस्तेमाल किफायती होता है। एक सामान्य मैकेनिक भी कार्ब्युरेट की मरम्मत साधारण टूल्स की मदद से आसानी से कर सकता है। जरूरत पड़ने पर कार्ब्युरेट के पार्ट्स बदले जा सकते हैं।  यानी, खराबी आने पर कार्ब्युरेट सस्ते में रिपेयर हो सकता है। संपूर्ण कार्ब्युरेट रिप्लेस करने की जरूरत हमेशा नहीं पड़ती। अगर संपूर्ण बदलना भी पड़े तो वह अधिक महंगा नहीं होता।

जबकि, मॉडर्न फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स की मदद से काम करता है। खराबी आने पर, इसे अक्सर पूरा ही बदलना पड़ जाता है। इसके छोटे-मोटे रिपेयर के लिए भी प्रशिक्षित मैकेनिक की जरूरत पड़ती है। फ्यूल इंजेक्टर, कार्ब्युरेट की तुलना में महंगा होता है। लेकिन, इन सबके बावजूद आज वाहनों में जमाना फ्यूल इंजेक्शन का हो चला है, क्योंकि इससे गाड़ियों को कार्ब्युरेट की तुलना में बेहतर माइलेज मिलती है और इंजन की उम्र लंबी होती है।

जाड़े के दिनों में या काफी ठंड वाली जगहों में अकसर कार्ब्युरेट वाले इंजन को स्टार्ट होने में वक्त लगाता है। चोक लेकर ‘कोल्ड स्टार्ट’ करना पड़ता है। जबकि, फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम में ऐसा नहीं होता। इसकी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली वातावरण के तापमान के अनुसार फ्यूल और एयर का सही अनुपात निर्धारित कर देता है। जिससे, इंजन जोरदार ठंड वाली परिस्थिति में भी आसानी से स्टार्ट होता है।

डीजल और पेट्रोल कारों तथा अन्य वाहनों में अब दुनिया भर में फ्यूल इंजेक्शन प्रणाली का इस्तेमाल हो रहा है। भारत में हाल तक कुछ महंगे बाइकों को छोड़कर सामान्य दोपहिया वाहनों में आम तौर पर कार्ब्युरेटर प्रणाली ही इस्तेमाल होती थी। लेकिन अब परिदृश्य बदल चुका है। स्कूटी जैसे छोटे टू-व्हीलर्स में भी अब फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम प्रयोग किया जा रहा है।

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